भारत में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया जाता है। अपने जीवन में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म सिद्ध करने वाले बापू का जीवन आदर्शो से भरा है। आज के समय में बेशक गांधी जी द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना सबको आसान ना लगे लेकिन इस सत्य से भी कोई मुख नहीं मोड़ सकता है कि अगर एक बार उनके बताए गए मार्ग पर चल दें तो संपूर्ण जीवन ही सरल हो जाए।



गांधी जी की कहानियां
महात्मा गांधी के बारें में हम सबने बचपन में अवश्य पढ़ा होगा लेकिन किताबों में सिमटी गांधी जी की कहानियां उनके जीवन का एक अंश मात्र है। हो सकता है आप अब शायद गांधी जी से जुड़ी कई बातों को भूल गए हो इसलिए हम आपके ज्ञान को एक बार फिर रिफ्रेश करने के लिए गांधी जी से जुड़ी कुछ विशेष बातों को लेकर आएं।
गांधी जी का जीवन
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। गांधी जी के जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जाता है। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी था जो राजकोट के दीवान थे और माता का नाम पुतलीबाई था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा काठियावाड़ में हुई।

पढ़ाई में नहीं थे खास, पर विचारों से थे महान
गांधी जी पढ़ाई में अधिक तेज नहीं थे। उन्होंने पोरबंदर से मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल पास किया। दोनों परिक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। 4 सितम्बर 1888 को गांधी जी यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। वहां से लौटने के बाद उन्‍होंने बंबई में वकालत शुरू की।
सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता
1893 में वे भारतीय फर्म के लिये केस लड़ने दक्षिण अफ्रीका गए। वहॉ उन्हें रंग भेद का सामना करना पड़ा। उन्हें प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने पर ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। इन घटनाओं ने उन्हें सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुक किया तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं।
जीवन बना सबसे बड़ा शिक्षक
एक सामान्य विद्यार्थी थे लेकिन उनके लिए समय सबसे बड़ा शिक्षक साबित हुआ। उनके बचपन की जुड़ी कुछ घटनाओं ने उनके आने वाले भविष्य को रूप देने में अहम भूमिका निभाई। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गांधी जी को भी युवावस्था में गलत आदतों का सामना करना पड़ा था।
जीवन बना सबसे बड़ा शिक्षक
गांधी जी ने बीड़ी पीने से लेकर पैसे चुराने तक के काम किए हैं लेकिन उन्हें समय रहते अपनी गलतियों का अहसास हुआ और उन्होंने दोबारा वह गलतियां नहीं की। एक महान शख्स वही है जो अपनी गलतियों से सीखे और उसे जीवन में दोबारा ना दोहराएं।
पिताजी से सीखा अहिंसा का गुण
गांधी जी के जीवन में अहिंसा का पाठ उनके पिताजी ने पढ़ाया। बचपन में एक बार चोरी करने की आत्मग्लानि से जुझते हुए उन्होंने अपनी व्यथा अपने पिताजी को लिखकर बताई। जब उनके पिताजी को वह पत्र मिला तो उसे पढ़ते-पढ़ते उनके आंसू निकल गए। उन्होंने पत्र पढ़कर उसे गांधीजी को वापस कर दिया। गांधी के मन-मस्तिषक पर यह बात घर कर गई कि उनके पिता चाहते तो उनके साथ अहिंसा से भी पेश आ सकते थे लेकिन उन्होंने शांत रहने का रास्ता चुना जो दिखने में बेशक मामूली लगे लेकिन उससे दर्द गांधी जी को बहुत हुआ। इसी दिन से गांधी ने ठान लिया कि जीवन में वह कभी भी लड़ाई-झगड़े का साथ नहीं देंगे अपितु अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलते हुए जीवन जीएंगे।
कम उम्र में विवाह
गांधी जी ने अपनी जीवन में हमेशा बाल-विवाह का विरोध किया लेकिन वह खुद इसके शिकार भी हुए। जब वह मात्र 13 साल के थे तो उनका विवाह 14 वर्षीय कस्तूरबा जी से कर दिया गया। कस्तूरबा जी गांधी जी से एक साल बड़ी थी। 1885 में जब गांधी जी 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। इसी साल उनके पिता करमचन्द गांधी जी की असमय मृत्यु हो गई। गांधी जी की चार संतान हुई। 1888 में हरीलाल गांधी, 1892 में मणिलाल गांधी, 1897 में रामदास गांधी और 1900 में जन्में थे देवदास गांधी। गांधी जी कस्तूरबा जी को प्यार से बा कहते थे। गांधी जी के साथ वह हर आंदोलन में कदम से कदम मिलाकर चली। गांधी जी के सत्य के खोज के कठिन समय में भी उन्होंने कभी विरोध नहीं किया।
गांधीजी के आध्यामिक विचार
दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए गांधीजी ने ईसाई, इस्लाम और हिन्दू धर्म की गहराई से अध्ययन किया। विद्वानों के साथ बातचीत और निजी अध्ययन के द्वारा वह इस तथ्य पर पहुंचे कि सभी धर्म सत्य हैं और फिर भी हर एक धर्म अपूर्ण है। क्योंकि धर्म की व्याख्या करने वालों ने अपनी रुचि और सहूलियत के अनुसार धर्म में बदलाव कर दिए हैं।
सबसे पहले किसने बुलाया महात्मा
गाँधी जी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।
गांधी जी और ब्रह्मचर्य के प्रयोग
सत्य के प्रयोग के अंतर्गत गांधी जी ने ब्रह्मचर्य को लेकर भी कुछ प्रयोग किए जिनके कारण अकसर लोग उनकी उपेक्षा करते हैं। आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि उनके इस प्रयोग से सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे बड़े नेता भी खफा थे। दरअसल इस दौरान गांधी जी खुद पर प्रयोग कर यह सिद्ध करना चाहते थे कि अगर मन पर संयम है तो ब्रह्मचर्य को अपनाया जा सकता है। इस दौरान उनके प्रयोग में सहयोग दिया मनुबेन ने। मनुबेन गांधी की प्रमुख निजी सेविका थीं। वे मालिश और नहलाने से लेकर उनका खाना पकाने तक सारे काम करती थीं।
शाकाहारी थे गांधी जी
महात्मा गांधी जी ना केवल विचारों से अहिंसावादी थे बल्कि अपने कर्मों में भी वह पूर्णत: अहिंसा रखते थे। वह केवल शाकाहार भोजन करते थे। लंदन में पढ़ने के दौरान उन्हें कई बार इस कारण शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ी थी लेकिन उन्होंने कभी अपने पांव पीछे नहीं खींचे। उनके जीवन में शाकाहार बनने की प्रेरणा उनकी मां ने दी थी जो जैन धर्म से काफी लगाव रखती थी।
जीवन चक्र की समाप्ति
30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 बजे नाथूराम गोडसे ने महात्मा को गोली मार दी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गांधी जी का जन्म शुक्रवार को हुआ था। देश को आजादी भी शुक्रवार को मिली थी और गांधी जी की हत्या भी शुक्रवार के दिन ही हुई थी। यह कुछ ऐसी बड़ी घटनाएं थी जिनसे गांधी जी का जीवन स्पष्ट होता है। 

Share To:

Post A Comment:

0 comments so far,add yours